Sunday, June 5, 2011

बापू द्वारा बताये गये अहिंसात्मक सत्याग्रह का बर्बरतापूर्वक अपमान ।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा बताये गये अहिंसात्मक सत्याग्रह का एक ब्रह्मचारी सन्यासी के नेतृत्व में अनुसरण करते हुए हज़ारों भूखे-प्यासे लोगों,जिनमें सन्त-फकीर,ज्ञानी-मौलाना आदि सहित महिला-पुरुष और बच्चे-बुज़ुर्ग सभी शामिल थे,उन पर आधी रात को लाठी,आँसू गैस और
पथराव करके अनशन स्थल से तितर-बितर कर दिया जाना कहाँ तक उचित है ?मंच को आग के हवाले कर देने के बाद क्या जन-हानि से इन्कार किया जा सकता था ? क्या इस तरह की प्रशासनिक और बर्बर कार्यवाही विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकतंत्र का मखौल नहीं कही जायेगी ?
क्या शान्तिपूर्वक तरीके से दिन में लोगों को हटाने का प्रयास नहीं किया जा सकता था ?
बड़े दुख का विषय है कि गत रात की घटना ने लोगों को 1975 की इमरजैंसी को याद करने को मजबूर कर दिया है ।
आज तक हमने जलियाँ वाला बाग काँड के बारे में सुना भर था किन्तु  92 वर्ष
बाद कल रात वो मंज़र देखने को मिला,सबसे अधिक दुख की बात यह है कि उस वक्त तो अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानियों पर हमला किया था,
जो कि हमारे दुश्मन थे,किन्तु कल तो हमारे ही लोगों ने हमारे ही लोगों पर अत्याचार किया । जो लोग बापू के सिद्धांतों की दुहाई दिया करते हैं वही बापू द्वारा बताये गये अहिंसात्मक सत्याग्रह पर बैठे लोगों पर बर्बर कार्यवाही करते हैं ।क्या इससे बापू के सिद्धांतों का खुला अपमान नहीं हुआ ।
सदियों से जिस देश में सन्यासियों को राजगुरु का दर्जा देकर पूजनीय माना गया है आज उस देश में एक ब्रह्मचारी सन्यासी, जो स्वहित के लिये नहीं राष्ट्र के 121करोड़ लोगों के लिये अनशन कर रहे थे,उनके साथ ऐसा व्यवहार क्या भारत की आत्मा को नहीं झकझोरेगा ?
आज देश में उत्पन्न इन हालातों से मन बहुत दुखी है ।
संगीता सक्सेना,
(एक स्वतंत्रता सैनानी परिवार की बेटी,जिसकी तीन पीढ़ियों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी )

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