Saturday, May 29, 2010

बिछुडे हुए बेटे को माँ से मिलाकर सुकून मिला

राजस्थान पत्रिका द्वारा आयोजित समर केम्प में अपनी योग और संगीत क्लासेस लेकर जैसे ही घर लौटने के लिये अपनी कार स्टार्ट करने लगी तभी एक किशोर ने
आवाज लगायी -आंटी जी हमें आप क्या जबलपुर पहुंचा सकती है ? हमें पैसा नहीं चाहिए हमें गाडी का टिकिट दिलवा कर हमारी मदद कर दीजिए यह कह्कर वह किशोर रोने लगा। 10 वीं कक्षा में जबलपुर के एक स्कूल में पढने वाले इस किशोर का नाम आशीष चौकसे था । पिता जी की मृत्यु पूर्व में ही हो चुकी है , माँ गीता बाई और एक छोटे भाई के साथ यह छोटा सा परिवार जबलपुर से लगभग
45किमी०दूर कालादेही गाँव में रहता है । माँ से किसी बात पर झगडा होने पर 5 दिन पूर्व आशीष घर से 500/-रु० मार्कशीट रेल्वे सीजन
टिकट (जबलपुर से कालादेही) तथा कुछ कपडे लेकर दयोदय एक्सप्रेस से जयपुर के लिये घर छोडकर चल दिया । छोटी उम्र अनुभव की कमी,अपनों की दूरी भीषण गर्मी,टी०टी० एवं पुलिस की बेरुखी से भारत का यह भावी नागरिक शीघ्र ही टूट कर
वापस दयोदय एक्स्प्रेस मं बैठकर जबलपुर के लिये चल दिया किन्तु टी०टी० ने टिकिट न होने के कारण पुलिस की मदद
से उसे कोटा स्टेशन पर उतार दिया । सारी रात भूख से कुलबुलाते हुए आशीष सवेरा होने की प्रतीक्षा करता रहा ।
दिन में उसने कई लोगोंसे मदद माँगी किन्तु किसी को उसकी उम्र एवं परेशानी पर तरस नहीं आया । मैंने उसकी पूरी बात सुनी
और उसे नाश्ता कराया तथा खर्च के लिये पर्याप्त पैसे देकर अपनी मित्र अन्तर्राष्ट्रीय टी०टी०खिलाडी श्रद्धा शर्मा को डी०आर०एम०
ऑफिस फोन करके बालक को उन तक पहुँचाया वहाँ बालक ने स्नान किया एवं उसे भोजन कराया गया तथा रात को दयोदय एक्स्प्रेस से रेल्वे स्टाफ के साथ आशीष को जबलपुर पहुँचाया गया । राष्ट्रीय संगीत संकल्प के जबलपुर परिवार ने बालक की माँ तक उसके लौटने की ख़बर पहुँचाने में हमारी बहुत मदद की ।
फोन की सुविधा मिलते ही अभी-अभी आशीष ने सूचित किया कि संगीता आंटी मैं ठीक से गाँव पहुँच गया हूँ,फोन चार्ज नहीं होने के
कारण सूचना देरी से कर पा रहा हूँ ,कोटा राजस्थान के लोग बहुत अच्छे हैं,मैं इस मदद को कभी नही भूल पाऊँगा और ऐसी
गल्ती फिर से नहीं करूँगा ।

इस घटना ने मुझे हिलाकर रख दिया,न जाने कितने बच्चे ऐसी गलती कर बैठते हैं किन्तु जब वो सुधरना चाहते हैं तो बहुत कम बच्चे आशीष जैसी किस्मत रखते हैं ।
मुझे लगता है कि हमें ऐसे बच्चों को समझना और फिर समझाना चाहिये तथा यथासंभव मदद भी करनी चाहिये । मुझे सुकून और खुशी है कि ईश्वर ने इस नेक कार्य के लिये मुझेमाध्यम बनाया ।

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